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‘मन की बात’ में पीएम ने सांझा की युवा छा़त्र-छात्राओं की परेशानियां

New Delhi, Mon, 30 Jan 2017 NI Wire

68वें गणतंत्र दिवस को हर्षोउल्लास के साथ मनाए जाने के बाद रविवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मन की बात रेडियों कार्यक्रम का हिस्सा बने। प्र्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम के जरिए इस बार देश के छात्र-छात्राओं को समर्पित रहा।

26 जनवरी, हमारा ‘गणतंत्र दिवस’ देश के कोने-कोने में उमंग और उत्साह के साथ हम सबने मनाया। भारत का संविधान, नागरिकों के कर्तव्य, नागरिकों के अधिकार, लोकतंत्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, एक प्रकार से ये संस्कार उत्सव भी है, जो आने वाली पीढ़ियों को लोकतंत्र के प्रति, लोकतान्त्रिक जिम्मेवारियों के प्रति, जागरूक भी करता है, संस्कारित भी करता है। लेकिन अभी भी हमारे देश में, नागरिकों के कर्तव्य और नागरिकों के अधिकार - उस पर जितनी बहस होनी चाहिए, जितनी गहराई से बहस होनी चाहिए, जितनी व्यापक रूप में चर्चा होनी चाहिए, वो अभी नहीं हो रही है। मैं आशा करता हूँ कि हर स्तर पर, हर वक़्त, जितना बल अधिकारों पर दिया जाता है, उतना ही बल कर्तव्यों पर भी दिया जाए। अधिकार और कर्तव्य की दो पटरी पर ही, भारत के लोकतंत्र की गाड़ी तेज़ गति से आगे बढ़ सकती है। 

कल 30 जनवरी है, हमारे पूज्य बापू की पुण्य तिथि है। 30 जनवरी को हम सब सुबह 11 बजे, 2 मिनट मौन रख करके, देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। एक समाज के रूप में, एक देश के रूप में, 30 जनवरी, 11 बजे 2 मिनट श्रद्धांजलि, यह सहज स्वभाव बनना चाहिए। 2 मिनट क्यों न हो, लेकिन उसमें सामूहिकता भी, संकल्प भी और शहीदों के प्रति श्रद्धा भी अभिव्यक्त होती है।

हमारे देश में सेना के प्रति, सुरक्षा बलों के प्रति, एक सहज आदर भाव प्रकट होता रहता है। इस गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, विभिन्न वीरता पुरस्कारों से, जो वीर-जवान सम्मानित हुए, उनको, उनके परिवारजनों को, मैं बधाई देता हूँ। इन पुरस्कारों में, ‘कीर्ति चक्र’, ‘शौर्य चक्र’, ‘परम विशिष्ट सेवा मेडल’, ‘विशिष्ट सेवा मेडल’ - अनेक श्रेणियाँ हैं। मैं ख़ास करके नौजवानों से आग्रह करना चाहता हूँ। आप social media में बहुत active हैं। आप एक काम कर सकते हैं? इस बार, जिन-जिन वीरों को ये सम्मान मिला है - आप Net पर खोजिए, उनके संबंध में दो अच्छे शब्द लिखिए और अपने साथियों में उसको पहुँचाइए। जब उनके साहस की, वीरता की, पराक्रम की बात को गहराई से जानते हैं, तो हमें आश्चर्य भी होता है, गर्व भी होता है, प्रेरणा भी मिलती है।

एक तरफ़ हम सब 26 जनवरी की उमंग और उत्साह की ख़बरों से आनंदित थे, तो उसी समय कश्मीर में हमारे जो सेना के जवान देश की रक्षा में डटे हुए हैं, वे हिमस्खलन के कारण वीर-गति को प्राप्त हुए। मैं इन सभी वीर जवानों को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूँ, नमन करता हूँ।

मेरे युवा साथियो, आप तो भली-भाँति जानते हैं कि मैं ‘मन की बात’ लगातार करता रहता हूँ। जनवरी, फ़रवरी, मार्च, अप्रैल - ये सारे महीने हर परिवार में, कसौटी के महीने होते हैं। घर में एक-आध, दो बच्चों की exam होती हैं, लेकिन पूरा परिवार exam के बोझ में दबा हुआ होता है। तो मेरा मन कर गया कि ये सही समय है कि मैं विद्यार्थी दोस्तों से बातें करूँ, उनके अभिवावकों से बातें करूँ, उनके शिक्षकों से बातें करूँ। क्योंकि कई वर्षों से, मैं जहाँ गया, जिसे मिला, परीक्षा एक बहुत बड़ा परेशानी का कारण नज़र आया। परिवार परेशान, विद्यार्थी परेशान, शिक्षक परेशान, एक बड़ा विचित्र सा मनोवैज्ञानिक वातावरण हर घर में नज़र आता है। और मुझे हमेशा ये लगा है कि इसमें से बाहर आना चाहिये और इसलिये मैं आज युवा साथियों के साथ कुछ विस्तार से बातें करना चाहता हूँ। जब ये विषय मैंने घोषित किया, तो अनेक शिक्षकों ने, अभिभावकों ने, विद्यार्थियों ने मुझे message भेजे, सवाल भेजे, सुझाव भेजे, पीड़ा भी व्यक्त की, परेशानियों का भी ज़िक्र किया और उसको देखने के बाद जो मेरे मन में विचार आए, वो मैं आज आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। मुझे एक टेलीफोन सन्देश मिला सृष्टि का। आप भी सुनिए, सृष्टि क्या कह रही है: -

“सर, मैं आपसे इतना कहना चाहती हूँ कि exams के time पे अक्सर ऐसा होता है कि हमारे घर में, आस-पड़ोस में, हमारी society में बहुत ही ख़ौफ़नाक और डरावना माहौल बन जाता है। इस वजह से student Inspiration तो कम, लेकिन down बहुत हो जाते है। तो मैं आपसे इतना पूछना चाहती हूँ कि क्या ये माहौल ख़ुशनुमा नहीं हो सकता?”

खैर, सवाल तो सृष्टि ने पूछा है, लेकिन ये सवाल आप सबके मन में होगा। परीक्षा अपने-आप में एक ख़ुशी का अवसर होना चाहिये। साल भर मेहनत की है, अब बताने का अवसर आया है, ऐसा उमंग-उत्साह का ये पर्व होना चाहिए। बहुत कम लोग हैं, जिनके लिए exam में pleasure होती है, ज़्यादातर लोगों के लिए exam एक pressure होती है। निर्णय आपको करना है कि इसे आप pleasure मानेंगे कि pressure मानेंगे। जो pleasure मानेगा, वो पायेगा; जो pressure मानेगा, वो पछताएगा। और इसलिये मेरा मत है कि परीक्षा एक उत्सव है, परीक्षा को ऐसे लीजिए, जैसे मानो त्योहार है। और जब त्योहार होता है, जब उत्सव होता है, तो हमारे भीतर जो सबसे best होता है, वही बाहर निकल कर के आता है। समाज की भी ताक़त की अनुभूति उत्सव के समय होती है। जो उत्तम से उत्तम है, वो प्रकट होता है। सामान्य रूप से हमको लगता है कि हम लोग कितने Indisciplined हैं, लेकिन जब 40-45 दिन चलने वाले कुम्भ के मेलों की व्यवस्था देखें, तो पता चलता है कि ये make-shift arrangement और क्या discipline है लोगों में। ये उत्सव की ताक़त है। exam में भी पूरे परिवार में, मित्रों के बीच, आस-पड़ोस के बीच एक उत्सव का माहौल बनना चाहिये। आप देखिए, ये pressure, pleasure में convert हो जाएगा। उत्सवपूर्ण वातावरण बोझमुक्त बना देगा। और मैं इसमें माता-पिता को ज़्यादा आग्रह से कहता हूँ कि आप इन तीन-चार महीने एक उत्सव का वातावरण बनाइए। पूरा परिवार एक टीम के रूप में इस उत्सव को सफल करने के लिए अपनी-अपनी भूमिका उत्साह से निभाए। देखिए, देखते ही देखते बदलाव आ जाएगा। हक़ीक़त तो ये है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक और कच्छ से ले करके कामरूप तक, अमरेली से ले करके अरुणाचल प्रदेश तक, ये तीन-चार महीने परीक्षा ही परीक्षायें होती हैं। ये हम सब का दायित्व है कि हम हर वर्ष इन तीन-चार महीनों को अपने-अपने तरीक़े से, अपनी-अपनी परंपरा को लेते हुए, अपने-अपने परिवार के वातावरण को लेते हुए, उत्सव में परिवर्तित करें। और इसलिए मैं तो आपसे कहूँगा ‘smile more score more’. जितनी ज़्यादा ख़ुशी से इस समय को बिताओगे, उतने ही ज़्यादा नंबर पाओगे, करके देखिए। और आपने देखा होगा कि जब आप खुश होते हैं, मुस्कुराते हैं, तो आप relax अपने-आप को पाते हैं। आप सहज रूप से relax हो जाते हैं और जब आप relax होते हैं, तो आपकी वर्षों पुरानी बातें भी सहज रूप से आपको याद आ जाती हैं। एक साल पहले classroom में teacher ने क्या कहा, पूरा दृश्य याद आ जाता है। और आपको ये पता होना चाहिए, memory को recall करने का जो power है, वो relaxation में सबसे ज़्यादा होता है। अगर आप तनाव में है, तो सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं, बाहर का अंदर नहीं जाता, अंदर का बाहर नहीं आता है। विचार प्रक्रिया में ठहराव आ जाता है, वो अपने-आप में एक बोझ बन जाता है। exam में भी आपने देखा होगा, आपको सब याद आता है। किताब याद आती है, chapter याद आता है, page number याद आता है, page में ऊपर की तरफ़ लिखा है कि नीचे की तरफ़, वो भी याद आता है, लेकिन वो particular शब्द याद नहीं आता है। लेकिन जैसे ही exam दे करके बाहर निकलते हो और थोड़ा सा कमरे के बाहर आए, अचानक आपको याद आ जाता है - हाँ यार, यही शब्द था। अंदर क्यों याद नहीं आया, pressure था। बाहर कैसे याद आया? आप ही तो थे, किसी ने बताया तो नहीं था। लेकिन जो अंदर था, तुरंत बाहर आ गया और बाहर इसलिये आया, क्योंकि आप relax हो गए। और इसलिये memory recall करने की सबसे बड़ी अगर कोई औषधि है, तो वो relaxation है। और ये मैं अपने स्वानुभव से कहता हूँ कि अगर pressure है, तो अपनी चीज़ें हम भूल जाते हैं और relax हैं, तो कभी हम कल्पना नहीं कर सकते, अचानक ऐसी-ऐसी चीज़ें याद आ जाती हैं, वो बहुत काम आ जाती हैं। और ऐसा नहीं है कि आप के पास knowledge नहीं है, ऐसा नहीं है कि आप के पास Information नहीं है, ऐसा नहीं है कि आपने मेहनत नहीं की है। लेकिन जब tension होता है, तब आपका knowledge, आपका ज्ञान, आपकी जानकारी नीचे दब जाती हैं और आपका tension उस पर सवार हो जाता है। और इसलिये आवश्यक है, ‘A happy mind is the secret for a good mark-sheet’. कभी-कभी ये भी लगता है कि हम proper perspective में परीक्षा को देख नहीं पाते हैं। ऐसा लगता है कि वो जीवन-मरण का जैसे सवाल है। आप जो exam देने जा रहे हैं, वो साल भर में आपने जो पढ़ाई की है, उसकी exam है। ये आपके जीवन की कसौटी नहीं है। आपने कैसा जीवन जिया, कैसा जीवन जी रहे हो, कैसा जीवन जीना चाहते हो, उसकी exam नहीं है। आपके जीवन में, classroom में, notebook ले करके दी गई परीक्षा के सिवाय भी कई कसौटियों से गुज़रने के अवसर आए होंगे। और इसलिये, परीक्षा को जीवन की सफलता-विफलता से कोई लेना-देना है, ऐसे बोझ से मुक्त हो जाइए। हमारे सबके सामने, हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी का बड़ा प्रेरक उदाहरण है। वे वायुसेना में भर्ती होने गए, fail हो गए। मान लीजिए, उस विफलता के कारण अगर वो मायूस हो जाते, ज़िंदगी से हार जाते, तो क्या भारत को इतना बड़ा वैज्ञानिक मिलता, इतने बड़े राष्ट्रपति मिलते! नहीं मिलते। कोई ऋचा आनंद जी ने मुझे एक सवाल भेजा है: -

“आज के इस दौर में शिक्षा के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती देख पाती हूँ, वो यह कि शिक्षा परीक्षा केन्द्रित हो कर रह गयी है। अंक सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। इसकी वजह से प्रतिस्पर्द्धा तो बहुत बढ़ी ही है, साथ में विद्यार्थियों में तनाव भी बहुत बढ़ गया है। तो शिक्षा की इस वर्तमान दिशा और इसके भविष्य को ले करके आपके विचारों से अवगत होना चाहूँगी।”

वैसे उन्होंने ख़ुद ने ही जवाब दे ही दिया है, लेकिन ऋचा जी चाहती हैं कि मैं भी इसमें कुछ अपनी बात रखूँ। marks और marks-sheet इसका एक सीमित उपयोग है। ज़िंदगी में वही सब कुछ नहीं होता है। ज़िंदगी तो चलती है कि आपने कितना ज्ञान अर्जित किया है। ज़िंदगी तो चलती है कि आपने जो जाना है, उसको जीने का प्रयास किया है क्या? ज़िंदगी तो चलती है कि आपको जो एक sense of mission मिला है और जो आपका sense of ambition है, ये आपके mission और ambition के बीच में कोई तालमेल हो रहा है क्या? अगर आप इन चीज़ों में भरोसा करोगे, तो marks पूँछ दबाते हुए आपके पीछे आ जाएँगे; आपको marks के पीछे भागने की कभी ज़रुरत नहीं पड़ेगी। जीवन में आपको knowledge काम आने वाला है, skill काम आने वाली है, आत्मविश्वास काम आने वाला है, संकल्पशक्ति काम आने वाली है। आप ही मुझे बताइए, आपके परिवार के कोई डॉक्टर होंगे और परिवार के सब लोग उन्हीं के पास जाते होंगे, family doctor होते हैं। आप में से कोई ऐसा नहीं होगा, जिसने अपने family doctor को कभी, वो कितने नंबर से पास हुआ था, पूछा होगा। किसी ने नहीं पूछा होगा। बस, आपको लगा कि भाई, एक डॉक्टर के नाते अच्छे हैं, आप लोगो को लाभ हो रहा है, आप उसकी सेवाएँ लेना शुरू किए। आप कोई बड़ा से बड़ा case लड़ने के लिए किसी वकील के पास जाते हैं, तो क्या उस वकील की marks-sheet देखते हैं क्या? आप उसके अनुभव को, उसके ज्ञान को, उसकी सफलता की यात्रा को देखते हैं। और इसलिये ये जो अंक का बोझ है, वो भी कभी-कभी हमें सही दिशा में जाने से रोक देता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं ये कहूँ कि बस, पढ़ना ही नहीं है। अपनी कसौटी के लिए उसका उपयोग ज़रुर है। मैं कल था, आज कहाँ हूँ, वो जानने के लिए ज़रुरी है। कभी-कभार ये भी होता है और अगर बारीक़ी से आप अपने स्वयं के जीवन को देखोगे, तो ध्यान में आएगा कि अगर अंक के पीछे पड़ गए, तो आप shortest रास्ते खोजोगे, selected चीजों को ही पकड़ोगे और उसी पर focus करोगे। लेकिन आपने जिन चीज़ों पर हाथ लगाया था, उसके बाहर की कोई चीज़ आ गई, आपने जो सवाल तैयार किए थे, उससे बाहर का सवाल आ गया, तो आप एकदम से नीचे आ जाएँगे। अगर आप ज्ञान को केंद्र में रखते हैं, तो बहुत चीज़ों को अपने में समेटने का प्रयास करते हो। लेकिन अंक पर focus करते हो, marks पर focus करते हो, तो आप धीरे-धीरे अपने-आप को सिकुड़ते जाते हो और एक निश्चित area तक अपने आपको सीमित करके सिर्फ marks पाने के लिये। तो हो सकता है कि exam में होनहार बनने के बावजूद भी जीवन में कभी-कभी विफल हो जाते हैं।

ऋचा जी, ने एक बात ये भी कही है ‘प्रतिस्पर्द्धा’। ये एक बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक लड़ाई है। सचमुच में, जीवन को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्द्धा काम नहीं आती है। जीवन को आगे बढ़ाने के लिए अनुस्पर्द्धा काम आती है और जब हम अनुस्पर्द्धा मैं कहता हूँ, तो उसका मतलब है, स्वयं से स्पर्द्धा करना। बीते हुए कल से आने वाला कल बेहतर कैसे हो? बीते हुए परिणाम से आने वाला अवसर अधिक बेहतर कैसे हो? अक्सर आपने खेल जगत में देखा होगा। क्योंकि उसमें तुरंत समझ आता है, इसलिए मैं खेल जगत का उदहारण देता हूँ। ज़्यादातर सफल खिलाड़ियों के जीवन की एक विशेषता है कि वो अनुस्पर्द्धा करते हैं। अगर हम श्रीमान सचिन तेंदुलकर जी का ही उदहारण ले लें। बीस साल लगातार अपने ही record तोड़ते जाना, खुद को ही हर बार पराजित करना और आगे बढ़ना। बड़ी अदभुत जीवन यात्रा है उनकी, क्योंकि उन्होंने प्रतिस्पर्द्धा से ज्यादा अनुस्पर्द्धा का रास्ता अपनाया।

जीवन के हर क्षेत्र में दोस्तो और जब आप exam देने जा रहे हैं तब, पहले अगर दो घंटे पढ़ पाते थे शान्ति से, वो तीन घंटे कर पाते हो क्या? पहले जितने बजे सुबह उठना तय करते थे, देर हो जाती थी, क्या अब समय पर उठ पाते हो क्या? पहले परीक्षा की tension में नींद नहीं आती थी, अब नींद आती है क्या? ख़ुद को ही आप कसौटी पर कस लीजिए और आपको ध्यान में आएगा - प्रतिस्पर्द्धा में पराजय, हताशा, निराशा और ईर्ष्या को जन्म देती है, लेकिन अनुस्पर्द्धा आत्मंथन, आत्मचिंतन का कारण बनती है, संकल्प शक्ति को दृढ़ बनाती है और जब ख़ुद को पराजित करते हैं, तो और अधिक आगे बढ़ने का उत्साह अपने-आप पैदा होता है, बाहर से कोई extra energy की ज़रूरत नहीं पड़ती है। भीतर से ही वो ऊर्जा अपने-आप पैदा होती है। अगर सरल भाषा में मुझे कहना है, तो मैं कहूँगा - जब आप किसी से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, तो तीन संभावनायें मोटी-मोटी नज़र आती हैं। एक, आप उससे बहुत बेहतर हैं। दूसरा, आप उससे बहुत ख़राब हैं या आप उसके बराबर के हैं। अगर आप बेहतर हैं तो बेपरवाह हो जाएँगे, अति विश्वास से भर जाएँगे। अगर आप उसके मुक़ाबले ख़राब करते हैं, तब दुखी और निराश हो जाएँगे, ईर्ष्या से भर जाएँगे, जो ईर्ष्या आपको, अपने-आप को, खाती जाएगी और अगर बराबरी के हैं, तो सुधार की आवश्यकता आप कभी महसूस ही नहीं करोगे। जैसी गाड़ी चलती है, चलते रहोगे। तो मेरा आपसे आग्रह है - अनुस्पर्द्धा का, ख़ुद से स्पर्द्धा करने का। पहले क्या किया था, उससे आगे कैसे करूँगा, अच्छा कैसे करूँगा। बस, इसी पर ध्यान केंद्रित कीजिए। आप देखिए, आपको बहुत परिवर्तन महसूस होगा।

श्रीमान एस. सुन्दर जी ने अभिभावकों की भूमिका के संबंध में अपनी भावना व्यक्त की है। उनका कहना है कि परीक्षा में अभिभावकों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। उन्होंने आगे लिखा है – “मेरी माँ पढ़ी-लिखी नहीं थी, फिर भी वह मेरे पास बैठा करती थी और मुझसे गणित के सवाल हल करने के लिये कहती थी। वह उत्तर मिलाती और इस तरह से वो मेरी मदद करती थी। ग़लतियाँ ठीक करती थी। मेरी माँ ने दसवीं की परीक्षा pass नहीं की, लेकिन बिना उनके सहयोग के मेरे लिये C.B.S.E. के exam pass करना नामुमकिन था।”

सुन्दर जी, आपकी बात सही है और आज भी देखा होगा आपने, मुझे सवाल पूछने वाले, सुझाव देने वालों में महिलाओं की संख्या ज़्यादा है, क्योंकि घर में बालकों के भविष्य के संबंध में मातायें जो सजग होती हैं, सक्रिय होती हैं, वे बहुत चीज़ें सरल कर देती हैं। मैं अभिभावकों से इतना ही कहना चाहूँगा - तीन बातों पर हम बल दें। स्वीकारना, सिखाना, समय देना। जो है, उसे accept कीजिए। आपके पास जितनी क्षमता है, आप mentor कीजिए, आप कितने ही व्यस्त क्यों न हों, समय निकालिए, time दीजिए। एक बार आप accept करना सीख लेंगे, अधिकतम समस्या तो वही समाप्त हो जाएगी। हर अभिभावक इस बात को अनुभव करता होगा, अभिभावकों का, टीचरों का expectation समस्या की जड़ में होता है। acceptance समस्याओं के समाधान का रास्ता खोलता है। अपेक्षायें राह कठिन कर देती हैं। अवस्था को स्वीकार करना, नए रास्ते खोलने का अवसर देती है और इसलिए जो है, उसे accept कीजिए। आप भी बोझमुक्त हो जाएँगे। हम लोग, छोटे बच्चों के school bag के वज़न की चर्चा करते रहते हैं, लेकिन कभी-कभी तो मुझे लगता है कि अभिभावकों की जो अपेक्षायें होती हैं, उम्मीदें होती हैं, वो बच्चे के school bag से भी ज़रा ज़्यादा भारी हो जाती हैं।

बहुत साल पहले की बात है। हमारे एक परिचित व्यक्ति heart attack के कारण अस्पताल में थे, तो हमारे भारत के लोक सभा के पहले Speaker गणेश दादा मावलंकर, उनके पुत्र पुरुषोत्तम मावलंकर, वो कभी M.P. भी रहे थे, वो उनकी तबीयत देखने आए। मैं उस समय मौजूद था और मैंने देखा कि उन्होंने आ करके उनकी तबीयत के संबंध में एक भी सवाल नहीं पूछा। बैठे और आते ही उन्होंने वहाँ क्या स्थिति है, बीमारी कैसी है, कोई बातें नहीं, चुटकुले सुनाना शुरू कर दिया और पहले दो-चार मिनट में ही ऐसा माहौल उन्होंने हल्का-फुल्का कर दिया। एक प्रकार से बीमार व्यक्ति को जाकर के जैसे हम बीमारी से डरा देते हैं। अभिभावकों से मैं कहना चाहूँगा, कभी-कभी हम भी बच्चों के साथ ऐसा ही करते हैं। क्या आपको कभी लगा कि exam के दिनों में बच्चों को हँसी-ख़ुशी का भी कोई माहौल दें। आप देखिए, वातावरण बदल जाएगा।

एक बड़ा कमाल का मुझे phone call आया है। वे सज्जन अपना नाम बताना नहीं चाहते हैं। phone सुन कर के आपको पता चलेगा कि वो अपना नाम क्यों नहीं बताना चाहते हैं?

“नमस्कार, प्रधानमंत्री जी, मैं अपना नाम तो नहीं बता सकता, क्योंकि मैंने काम ही कुछ ऐसा किया था अपने बचपन में। मैंने बचपन में एक बार नक़ल करने की कोशिश की थी, उसके लिये मैंने बहुत तैयारी करना शुरू किया कि मैं कैसे नक़ल कर सकता हूँ, उसके तरीक़ों को ढूँढ़ने की कोशिश की, जिसकी वजह से मेरा बहुत सारा time बर्बाद हो गया। उस time में मैं पढ़ करके भी उतने ही नंबर ला सकता था, जितना मैंने नक़ल करने के लिए दिमाग लगाने में ख़र्च किया। और जब मैंने नक़ल करके पास होने की कोशिश की, तो मैं उसमें पकड़ा भी गया और मेरी वजह से मेरे आस-पास के कई दोस्तों को काफ़ी परेशानी हुई।”

आपकी बात सही है। ये जो short-cut वाले रास्ते होते हैं, वो नक़ल करने के लिये कारण बन जाते हैं। कभी-कभार ख़ुद पर विश्वास नहीं होने के कारण मन करता है कि बगल वाले से ज़रा देख लूँ, confirm कर लूँ, मैंने जो लिखा है, सही है कि नहीं है और कभी-कभी तो हमने सही लिखा होता है, लेकिन बगल वाले ने झूठा लिखा होता है, तो उसी झूठ को हम कभी स्वीकार कर लेते हैं और हम भी मर जाते हैं। तो नक़ल कभी फ़ायदा नहीं करती है। ‘To cheat।s to be cheap, so please, do not cheat’। नक़ल आपको बुरा बनाती है, इसलिये नक़ल न करें। आपने कई बार और बार-बार ये सुना होगा कि नक़ल मत करना, नक़ल मत करना। मैं भी आपको वही बात दोबारा कह रहा हूँ। नक़ल को आप हर रूप में देख लीजिए, वो जीवन को विफल बनाने के रास्ते की ओर आपको घसीट के ले जा रही है और exam में ही अगर निरीक्षक ने पकड़ लिया, तो आपका तो सब-कुछ बर्बाद हो जाएगा और मान लीजिए, किसी ने नहीं पकड़ा, तो जीवन पर आपके मन पर एक बोझ तो रहेगा कि आपने ऐसा किया था और जब कभी आपको अपने बच्चों को समझाना होगा, तो आप आँख में आँख मिला कर के नहीं समझा पाओगे। और एक बार नक़ल की आदत लग गई, तो जीवन में कभी कुछ सीखने की इच्छा ही नहीं रहेगी। फिर तो आप कहाँ पहुँच पाओगे?

मान लीजिए, आप भी अपने रास्तों को गड्ढे में परिवर्तित कर रहे हो और मैंने तो देखा है, कुछ लोग ऐसे होते हैं कि नक़ल के तौर-तरीक़े ढूँढ़ने में इतनी talent का उपयोग कर देते हैं, इतना Investment कर देते हैं; अपनी पूरी creativity जो है, वो नक़ल करने के तौर-तरीक़ों में खपा देते हैं। अगर वही creativity, यही time आप अपने exam के मुद्दों पर देते, तो शायद नक़ल की ही ज़रुरत नहीं पड़ती। अपनी ख़ुद की मेहनत से जो परिणाम प्राप्त होगा, उससे जो आत्मविश्वास बढ़ेगा, वो अद्भुत होगा।

एक phone call आया है: -

“नमस्कार, प्रधानमंत्री जी। My name is Monica and since I am a class 12th student, I wanted to ask you a couple of questions regarding the Board Exams. My first question is, what can we do to reduce the stress that builds up during our exams and my second question is, why exams all about work and no play are. Thank you.”

अगर परीक्षा के दिनों में, मैं आपको खेल-कूद की बात करूँगा, तो आपके teacher, आपके parents ये मुझ पर गुस्सा करेंगे, वो नाराज़ हो जाएँगे कि ये कैसा प्रधानमंत्री है, बच्चों को exam के समय में कह रहा है, खेलो। क्योंकि आम तौर पर धारणा ऐसी है कि अगर विद्यार्थी खेल-कूद में ध्यान देते हैं, तो शिक्षा से बेध्यान हो जाते हैं। ये मूलभूत धारणा ही ग़लत है, समस्या की जड़ वो ही है। सर्वांगीण विकास करना है, तो किताबों के बाहर भी एक ज़िन्दगी होती है और वो बहुत बड़ी विशाल होती है। उसको भी जीने का सीखने का यही समय होता है। कोई ये कहे कि मैं पहले सारी परीक्षायें पूर्ण कर लूँ, बाद में खेलूँगा, बाद में ये करूँगा, तो असंभव है। जीवन का यही तो moulding का time होता है। इसी को तो परवरिश कहते हैं। दरअसल परीक्षा में मेरी दृष्टि से तीन बातें बहुत ज़रुरी हैं – proper rest आराम, दूसरा जितनी आवश्यक है शरीर के लिये, उतनी नींद और तीसरा दिमागी activity के सिवाय भी शरीर एक बहुत बड़ा हिस्सा है। तो शरीर के बाकी हिस्सों को भी physical activity मिलनी चाहिए। क्या कभी सोचा है कि जब इतना सारा सामने हो, तो दो पल बाहर निकल कर ज़रा आसमान में देखें, ज़रा पेड़-पौधों की तरफ देखें, थोड़ा-सा मन को हल्का करें, आप देखिए, एक ताज़गी के साथ फिर से आप अपने कमरे में, अपनी किताबों के बीच आएँगे। आप जो भी कर रहे हों, थोड़ा break लीजिए, उठ करके बाहर जाइए, kitchen में जाइए, अपनी पसंद की कोई चीज़ है, ज़रा खोजिए, अपनी पसंद का biscuit मिल जाए, तो खाइए, थोड़ी हँसी-मज़ाक कर लीजिए। भले पांच मिनट क्यों न हो, लेकिन आप break दीजिए। आपको महसूस होगा कि आपका काम सरल होता जा रहा है। सबको ये पसंद है कि नहीं, मुझे मालूम नहीं, लेकिन मेरा तो अनुभव है। ऐसे समय deep breathing करते हैं, तो बहुत फ़ायदा होता है। गहरी साँस आप देखिए बहुत relax हो जाता है। गहरी साँस भी लेने के लिये कोई कमरे में fit रहने की ज़रुरत नहीं है। ज़रा खुले आसमान के नीचे आएँ, छत पर चले जाएँ, पांच मिनट गहरी साँस ले करके फिर अपने पढ़ने के लिए बैठ जाएँ, आप देखिए, शरीर एक दम से relax हो जाएगा और शरीर का जो relaxation आप अनुभव करते हैं न, वो दिमागी अंगों का भी उतना ही relaxation कर देता है। कुछ लोगों को लगता है, रात को देर-देर जागेंगे, ज़्यादा-ज़्यादा पढ़ेंगे - जी नहीं, शरीर को जितनी नींद की आवश्यकता है, वो अवश्य लीजिए, उससे आपका पढ़ने का समय बर्बाद नहीं होगा, वो पढ़ने की ताक़त में इज़ाफ़ा करेगा। आपका concentration बढ़ेगा, आपकी ताज़गी आएगी, freshness होगा। आपकी efficiency में overall बहुत बड़ी बढ़ोतरी होगी। मैं जब चुनाव में सभायें करता हूँ, तो कभी-कभी मेरी आवाज़ बैठ जाती है। तो मुझे एक लोक गायक मिलने आए। उन्होंने मुझे आकर के पूछा - आप कितने घंटे सोते हैं। मैंने कहा - क्यों भाई, आप डॉक्टर हैं क्या? नहीं-नहीं, बोले - ये आपका आवाज़ जो चुनाव के समय भाषण करते-करते ख़राब हो जाता है, उसका इसके साथ संबंध है। आप पूरी नींद लेंगे, तभी आपके vocal cord को पूरा rest मिलेगा। अब मैंने नींद को और मेरे भाषण को और मेरी आवाज़ को कभी सोचा ही नहीं था, उन्होंने मुझे एक जड़ी-बूटी दे दी। तो सचमुच में हम इन चीज़ों का महत्व समझें, आप देखिए, आपको फ़ायदा होगा। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बस सोते ही रहें, लेकिन कुछ कहेंगे कि प्रधानमंत्री जी ने कह दिया है, अब बस जागने की ज़रुरत नहीं है, सोते रहना है। तो ऐसा मत करना, वरना आपके परिवार के लोग मेरे से नाराज़ हो जाएँगे। और आपकी अगर marks-sheet जिस दिन आएगी, तो उनको आप नहीं दिखाई दोगे, मैं ही दिखाई दूँगा। तो ऐसा मत करना। और इसलिये मैं तो कहूँगा ‘P for prepared and P for play’, जो खेले वो खिले, ‘the person who plays, shines’. मन, बुद्धि, शरीर उसको सचेत रखने के लिये ये एक बहुत बड़ी औषधि है।

ख़ैर, युवा दोस्तो, आप परीक्षा की तैयारी में हैं और मैं आपको मन की बातों में जकड़ कर बैठा हूँ। हो सकता है, ये आज की मेरी बातें भी तो आपके लिये relaxation का तो काम करेंगी ही करेंगी। लेकिन मैं साथ-साथ ये भी कहूँगा, मैंने जो बातें बताई हैं, उसको भी बोझ मत बनने दीजिए। हो सकता है तो करिए, नहीं हो सकता तो मत कीजिए, वरना ये भी एक बोझ बन जाएगा। तो जैसे मैं आपके परिवार के माता-पिता को बोझ न बनने देने की सलाह देता हूँ, वो मुझ पर भी लागू होती हैं। अपने संकल्प को याद करते हुए, अपने पर विश्वास रखते हुए, परीक्षा के लिये जाइए, मेरी बहुत शुभकामनायें हैं । हर कसौटी से पार उतरने के लिये कसौटी को उत्सव बना दीजिए। फिर कभी कसौटी, कसौटी ही नहीं रहेगी। इस मंत्र को ले करके आगे बढ़ें।

प्यारे देशवासियो, 1 फरवरी 2017 Indian Coast Guard के 40 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस अवसर पर मैं Coast Guard के सभी अधिकारियों एवं जवानों को राष्ट्र के प्रति उनकी सेवा के लिये धन्यवाद देता हूँ। ये गर्व की बात है कि Coast Guard देश में निर्मित अपने सभी 126 ships और 62 aircrafts के साथ विश्व के 4 सबसे बड़े Coast Guard के बीच अपना स्थान बनाए हुए है। Coast Guard का मंत्र है ‘वयम् रक्षामः’। अपने इस आदर्श वाक्य को चरितार्थ करते हुए, देश की समुद्री सीमाओं और समुद्री परिवेश को सुरक्षित करने के लिये Coast Guard के जवान प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दिन-रात तत्पर रहते हैं। पिछले वर्ष Coast Guard के लोगों ने अपनी जिम्मेवारियों के साथ-साथ हमारे देश के समुद्र तट को स्वच्छ बनाने का बड़ा अभियान उठाया था और हज़ारों लोग इसमें शरीक़ हुए थे। Coastal Security के साथ-साथ Coastal Cleanness इसकी भी चिंता की उन्होंने, ये सचमुच में बधाई के पात्र हैं। और बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हमारे देश में Coast Guard में सिर्फ़ पुरुष नहीं हैं, महिलायें भी कन्धे से कन्धा मिला कर समान रूप से अपनी जिम्मेवारियाँ निभा रहीं हैं और सफलतापूर्वक निभा रहीं हैं। Coast Guard की हमारी महिला अफ़सर Pilot हों, Observers के रूप में काम हों, इतना ही नहीं, Hovercraft की कमान भी संभालती हैं। भारत के तटीय सुरक्षा में लगे हुए और सामुद्रिक सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय आज विश्व का बना हुआ है, तब मैं Indian Coast Guard के 40वीं वर्षगांठ पर उनको बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

1 फरवरी को वसन्त पंचमी का त्यौहार है, वसन्त - ये सर्वश्रेष्ठ ऋतु के रूप में, उसको स्वीकृति मिली हुई है। वसन्त - ये ऋतुओं का राजा है। हमारे देश में वसन्त पंचमी सरस्वती पूजा का एक बहुत बड़ा त्योहार होता है। विद्या की आराधना का अवसर माना जाता है। इतना ही नहीं, वीरों के लिए प्रेरणा का भी पर्व होता है। ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ - ये वही तो प्रेरणा है। इस वसन्त पंचमी के पावन त्योहार पर मेरी देशवासियों को बहुत-बहुत शुभकामनायें हैं।

मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में आकाशवाणी भी अपनी कल्पकता के साथ हमेशा नये रंग-रूप भरता रहता है। पिछले महीने से उन्होंने मेरी ‘मन की बात’ पूर्ण होने के तुरंत बाद प्रादेशिक भाषाओं में ‘मन की बात’ सुनाना शुरू किया है। इसको व्यापक स्वीकृति मिली है। दूर-दूर से लोग चिट्ठियाँ लिख रहे हैं। मैं आकाशवाणी को उनके इस स्वयं प्रेरणा से किए गए काम के लिये बहुत-बहुत अभिनन्दन करता हूँ। देशवासियो, में आपका भी बहुत अभिनन्दन करता हूँ। ‘मन की बात’ मुझे आपसे जुड़ने का एक बहुत बड़ा अवसर देती है। बहुत-बहुत शुभकामनायें। धन्यवाद।

स्रोत-पीआईबी


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