कहा जाता है ‘ अति सर्वत्र वर्जयेत’ अर्थात किसी भी स्थिति में अति नुकसान देह होता है। दसों दिशाओं पर राज्य करने वाला परम विद्वान और शिव का अन्नय भक्त लंकापति रावण का भी एक सीमा से अधिक उपलब्धि पाना और उस पर अहंकार करना उसके पूरे साम्राज्य के लिये घातक साबित हुआ।
रावण को अहंकार हुआ कि वह संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिसे वह हासिल नहीं कर सकता। उसके इसी अहंकार को तोड़ने के लिये विधि उसकी नजर माता सीता पर ले गयी। अंत में मर्यादा पुरुषोत्तम ने बुराईयों का सर्वनाश किया और सत्य को विजय श्री प्राप्त हुई।
दशहरे का यह पर्व भी हमें यही सीख देता है कि हम सत्य और अच्छाईयों सेे जितना मुह मोडेंगे उतना ही कदम कदम पर हमें सत्य का सामना करना पडे़गा। जैसे रामलीला मैदान में अंगद ने सर्जिकल स्ट्राइक से रावण को डराया हर वर्ष इसी तरह से हमें भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों, देशद्रोहियों, लड़कियों पर तेजाब फेकने वाले दुष्ट लोगों का विरोध करके इनसे समाज को मुक्ति दिलाकर यह पर्व मनाना चाहिए। तभी और केवल तभी यह पर्व सार्थक साबित होगा।
रावण केवल दानव ही नहीं बहुत बड़ा शिवभक्त और ज्ञानी भी था और उसके ज्ञान की तो कोई सीमा नहीं थी बावजूद इसके वो एक अच्छा शासक साबित नहीं हुआ क्योंकि उसने अपनी जनता और समा्रज्य की परवाह किये बगैर सबकुछ अपने अहंकार की अग्नि में झोक दिया।
दशहरा का पर्व हमें दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, ईर्ष्या, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
इस त्यौहार को मानने के दो सन्दर्भ है दानो ही सन्दर्भ में यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। पहला सन्दर्भ माता दुर्गा के महिषासुर के वध करने को लेकर है। मान्यता है कि माँ दुर्गा ने महिषासुर से लगातार नौ दिनो तक युद्ध करके दशहरे के दिन ही महिषासुर का वध किया था। इसीलिए नवरात्रि के बाद इसे दुर्गा के नौ शक्ति रूप के विजय-दिवस के रूप में विजया-दशमी के नाम से मनाया जाता है।
जबकि भगवान श्रीराम ने नौ दिनो तक रावण के साथ युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजय-दशमी के रूप में मनाते हैं। साथ ही इस दिन रावण का वध हुआ था, जिसके दस सिर थे, इसलिए इस दिन को दशहरा यानी दस सिर वाले के प्राण हरण होने वाले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
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